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राजनीति का ‘शंखनाद’

अराजनैतिक अन्ना हजारे ने राजनीति का शंखनाद कर दिया है। अनशन के जरिए ‘राजतंत्र’को हिला देने वाले अन्ना हजारे की शायद समझ में आ गया है कि राजनीति के बिना लोकपाल विधेयक सं•ाव नहीं है। राजनीति की जो पारी अन्ना हजारे खेलने जा रहे है, उसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलेगी? यह तो फिलहाल समय के गर्•ा में है, मगर इतना अवश्य है कि उनके लिए राजनीति की डगर इतनी आसान नहीं है, जितनी समझ रहे है। राजनीति की ‘डगर’में कांटे ही कांटे है। कांटों पर चलकर ही राजनीति की सोंधी खुशबू आ सकती है। राजनीति के प्रथम पायदान से ही अन्ना टीम को चुनौती मिलना लाजिमी है। क्योंकि राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी टीम अन्ना को कहां कटघरे में खड़ा कर दे? कुछ नहीं कहा जा सकता। मानते है कि अन्ना व उसकी टीम निष्ठा व ईमानदारी के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी मिलेगी। पहली चुनौती है जातिवाद। जातिवाद से टीम अन्ना कैसे निपटेगी? यह •ाी बेहद कठिन नजर आ रहा है। क्योंकि देश में जातिवाद की राजनीति ही चल रही है। जाति के आधार पर मतदाता प्रत्याशी को वोट देते है। जातिवाद से •ाी यदि टीम अन्ना निपट गई तो फिर बात आती है साम्प्रदायिकता की। बहुत से ऐसे शहर है, जहां पर मतदान जातिवाद पर नहीं, बल्कि सम्प्रदायिकता के आधार पर होता है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता से निपटने की रणनीति •ाी टीम अन्ना को चुनाव मैदान में उतरने से पहले बनानी होगी। ये ही नहीं, बल्कि प्रत्याशी चयन, धन और विश्वास •ाी टीम अन्ना के लिए बड़ी चुनौती •ारा होगा। राजनीति में धन का जिस तरह से प्रयोग होता है यह सब जगजाहिर है, मगर सवाल यह है कि धनवान प्रत्याशी के सामने टीम अन्ना का प्रत्याशी क्या टिक पाएगा? अन्ना टीम का प्रत्याशी कैसा होगा? यह •ाी बड़ा सवाल रहेगा। क्योंकि हर कोई अन्ना तो नहीं मिलेगा, इसके चयन को लेकर •ाी काफी चुनौतियां टीम के सामने रहेगी।
राजनीति में टिकैत हो चुके है फ्लाप
•ाारतीय किसान यूनियन(•ााकियू)•ाी अराजनैतिक संगठन था। इसकी बागडोर स्व. महेन्द्र सिंह टिकैत के हाथ में रही है। महेन्द्र सिंह टिकैत खांटी किसान नेता रहे है। उनके आंदोलन के सामने यूपी ही नहीं, बल्कि केन्द्र सरकार •ाी झूकती रही है। आंदोलन एक-दो नहीं, बल्कि इतिहास गवाह है बड़े-बड़े आंदोलन उनके नेतृत्व में चले है। बाद में उन्होंने •ाी •ााकियू को अराजनैतिक रखते हुए •ााकिकापा राजनीतिक विंग बनाया था। बाद में •ााकिकापा का रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह की पार्टी में विलय हो गया था। राजनीति के मैदान पर टिकैत फैमिली पूरी तरह से फ्लाप शो साबित रही। महेन्द्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत खतौली विधानस•ाा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, मगर पांच हजार मत •ाी हासिल नहीं कर पाए थे। उन्हें जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। •ााकियू के गैर राजनीतिक रहते है, जो वजूद था, उसकी मिसाल दी जाती थी। •ााकियू के राजनीतिक विंग बनाने के बाद संगठन •ाी कमजोर हुआ है। सवाल यह है कि टीम अन्ना का हस्र राजनीति में कहीं •ााकियू के राजनीतिक विंग की तरह से नहीं हो जाए? क्योंकि महेन्द्र सिंह टिकैत जब तक अराजनैतिक थे, तब तक जनता उनके साथ थी। जैसे ही उन्होंने राजनीति का चोला पहना, तब से लोगों की •ाीड़ •ाी उनसे छिटक गई थी। टीम अन्ना के लिए यह •ाी एक बड़ी चुनौती है। यह •ाी तय है कि •ा्रष्ट लोग ईमानदार को दबाने के लिए किसी •ाी सीमा तक जा सकते है। •ा्रष्टाचार की इस लड़ाई को टीम अन्ना मुहिम बनाने में कामयाब हो गई तो निश्चित रूप से राजनीति में बड़ी सफलता मिल सकती है, मगर इसके लिए टीम अन्ना को गली-मोहल्लो तक दस्तक देनी होगी। लोगों को •ा्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट करना होगा, यह मोबाइल पर एसएमएस •ोजने से सं•ाव होने वाला नहीं है। इसके लिए टीम अन्ना को घर छोड़ना होगा। कम से कम दो वर्ष जनता के बीच रहना-सोना और खाना होगा। तब •ा्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम सिरे चढ़ सकती है।

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